भक्ति योग क्या है ?
भक्ति योग जानने से पहले योग जान लेते हैं योग क्या है ?योग शरीर को स्वस्थ रखने के लिए एक क्रिया है। मनुष्य यह भूल चुका है
जिसने सूरज चांद बनाया।
जिसने तारों को चमकाया।
जिसने सारा जगत बनाया।
हम उस ईश्वर के गुण गाएं।
उसे प्रेम से शीश झुकाएं।
अर्थात जिस परमात्मा ने हमारा शरीर बनाया है वहीं इसे स्वस्थ रखने की विधि भी बताएगा। इस योग को करने से मनुष्य जीवन का उद्देश्य कभी भी पूरा नही होगा न ही परमात्मा की प्राप्ति होगी। प्राचीन काल में ऋषि मुनि योग साधना करके अपना शरीर तक गला दिया लेकिन परमात्मा नही मिला। मनुष्य जीवन का एकमात्र उद्देश्य जन्म मरण के रोग से मुक्ति पाना है अर्थात 84 लाख योनियों की खान से मुक्ति पाना है।
गीता बोलने वाला भगवान ब्रह्म अर्जुन से अ 2 के श्लोक 59 और 60 में कह रहा है कि जो मनुष्य हठपूर्वक इंद्रियों को बिषयों से दूर रखता है उसकी ऐसी स्थिति होती है जैसे कोई भूखे व्यक्ति का मन हमेशा भोजन के स्वाद में आसक्ति बनी रहती है।
जिसने सूरज चांद बनाया।
जिसने तारों को चमकाया।
जिसने सारा जगत बनाया।
हम उस ईश्वर के गुण गाएं।
उसे प्रेम से शीश झुकाएं।
अर्थात जिस परमात्मा ने हमारा शरीर बनाया है वहीं इसे स्वस्थ रखने की विधि भी बताएगा। इस योग को करने से मनुष्य जीवन का उद्देश्य कभी भी पूरा नही होगा न ही परमात्मा की प्राप्ति होगी। प्राचीन काल में ऋषि मुनि योग साधना करके अपना शरीर तक गला दिया लेकिन परमात्मा नही मिला। मनुष्य जीवन का एकमात्र उद्देश्य जन्म मरण के रोग से मुक्ति पाना है अर्थात 84 लाख योनियों की खान से मुक्ति पाना है।
गीता बोलने वाला भगवान ब्रह्म अर्जुन से अ 2 के श्लोक 59 और 60 में कह रहा है कि जो मनुष्य हठपूर्वक इंद्रियों को बिषयों से दूर रखता है उसकी ऐसी स्थिति होती है जैसे कोई भूखे व्यक्ति का मन हमेशा भोजन के स्वाद में आसक्ति बनी रहती है।
गीता बोलने वाला भगवान अ 2 के श्लोक 66 और 68 में बिल्कुल क्लियर अर्जुन से कहा है कि जिसको तत्वदर्शी संत नहीं मिला, वह परमात्मा के स्मरण
में स्थिर नहीं हो सकता क्योंकि उसका मन वश नहीं है। उस अयुक्त यानि परमात्मा पर न टिके
मन वाले पुरूष में बुद्धि स्थिर नहीं होती और उस अयुक्त यानि परमात्मा में दृढ़ता से न लगे
अभक्त के अंदर भक्ति भाव नहीं होता और बिना भाव के व्यक्ति को परमात्मा के स्मरण से मिलने
वाली शांति नहीं मिलती। अशांत मनुष्य को सुख कैसे हो सकता है? अर्थात् वह कभी सुखी नहीं हो
सकता।
फिर अ 6 के श्लोक 16 में अर्जुन से कह रहा है कि ये योग न तो बहुत अधिक खाने वाले का सिद्ध होता है और न ही बिल्कुल न खाने वाले का अर्थात अपना कर्म करते करते परमात्मा की सतभक्ति करना ही असली योग है
गीता अध्याय 2 श्लोक 64, 65 में कहा गया है कि शास्त्रविधि अनुसार पूर्ण परमात्मा की साधना करने वाला साधक, संसार में रहकर काम करता हुआ, परिवार पोषण करता हुआ भी सत्य साधना से सुखदाई मोक्ष को प्राप्त होता है।
गीता अध्याय 3 श्लोक 5 से 8 में प्रमाण है कि जो एक स्थान पर बैठकर हठ योग करके इन्द्रियों को रोककर साधना करते हैं वे पाखण्डी हैं। योग व हठयोग करने से पाप कर्म नहीं कटते और ना ही जन्म मृत्यु व चौरासी का चक्कर समाप्त होता है।
संतों की वाणी है
डिंब करें डूंगर चढ़े, अंतर झीनी झूल।
जग जाने बंदगी करें, ये बोवैं सूल बबूल।।
हमें सबसे बड़ा रोग जन्म-मृत्यु का लगा है और यह केवल संतरामपालजी महाराज द्वारा दी गई भक्ति योग से ही मिट सकता है। इसलिए जन्म मरण के रोग को खत्म करने के लिए पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी की शरण ग्रहण करें, सतभक्ति प्राप्त करें व सभी रोगों से मुक्ति पाएं। अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा पढ़ें 🙏👇
संतरामपालजी महाराज के मंगलप्रवचन निम्न चैनलों पर रोजाना सुन सकते हैं 🙏👇
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ردحذفNice blog
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