पुण्यात्माओं आज भारत के हर गली मोहल्लों में गुरुओं की भरमार है आप उनमें से पूर्ण संत ,सच्चे गुरु अर्थात तत्वदर्शी संत की पहचान कैसे करेंगे ?
इस कलयुग में आध्यात्मिक ज्ञान इतना उलझा हुआ है कि इस ज्ञान को तत्वदर्शी संत रुप में स्वयं कबीर परमात्मा सुलझाने के लिए आते हैं।
कबीर,नौ मन सूत उलझिया,ऋषि रहे झकमार।
सतगुरु ऐसा सुलझा लें,उलझे न दूजी बार।।
इसके लिए पुण्यात्माओं आपको सद्ग्रंथों का ही सहारा लेना होगा। क्योंकि आप शिक्षित हैं बुद्धिजीवी हैं ।
गीता बोलने वाला भगवान ब्रह्म अ 16 के श्लोक 23 में कहा है जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर मनमानी पूजा करते हैं उनको कोई भी लाभ नही होगा और वह धीरे-धीरे वह नास्तिक हो जाता है फिर इसी अध्याय के श्लोक 24 में कहा है कि हे अर्जुन तेरे कर्त्तव्य और अकर्तव्य क्या हैं सदग्रंथ ही को प्रमाण मानना किसी की बातों में नही आना।
तो अरहट का कुंआ लोई,यहां गल बंध्या है सब कोई।
कीड़ी कुंजर और अवतारा,अरहट डोर बंधे कई बारा।।
इस कलयुग में आध्यात्मिक ज्ञान इतना उलझा हुआ है कि इस ज्ञान को तत्वदर्शी संत रुप में स्वयं कबीर परमात्मा सुलझाने के लिए आते हैं।
कबीर,नौ मन सूत उलझिया,ऋषि रहे झकमार।
सतगुरु ऐसा सुलझा लें,उलझे न दूजी बार।।
इसके लिए पुण्यात्माओं आपको सद्ग्रंथों का ही सहारा लेना होगा। क्योंकि आप शिक्षित हैं बुद्धिजीवी हैं ।
गीता बोलने वाला भगवान ब्रह्म अ 16 के श्लोक 23 में कहा है जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर मनमानी पूजा करते हैं उनको कोई भी लाभ नही होगा और वह धीरे-धीरे वह नास्तिक हो जाता है फिर इसी अध्याय के श्लोक 24 में कहा है कि हे अर्जुन तेरे कर्त्तव्य और अकर्तव्य क्या हैं सदग्रंथ ही को प्रमाण मानना किसी की बातों में नही आना।
तत्वदर्शी संत की आवश्यकता क्यों ?
हम सभी पुण्यात्माओं को तो पता ही है देवता भी मनुष्य शरीर पाने के लिए तरसते हैं क्योंकि इस शरीर के माध्यम से हम मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं ।
कबीर परमेश्वर जी की वाणी है।👇 तो अरहट का कुंआ लोई,यहां गल बंध्या है सब कोई।
कीड़ी कुंजर और अवतारा,अरहट डोर बंधे कई बारा।।
कबीर ,मानुषजनम दुर्लभ है,यह मिलै न बारम्बार।
जैसे तरुवर से पत्ता टूट पड़ा,बहुर न लगता डार।।
कबीर,स्वांस ऊस्वांस नाम जपो,व्यर्था स्वांस मत खो।
न जाने इस स्वांस को, आवन हो की न हो।।
संत गरीब दास जी महाराज की वाणी है।
गरीब,सतगुरु जो चाहे सो करही,चौदह कोटि दूत यम डरही।
ऊत भूत यम त्रास निवारे, चित्रगुप्त के कागज फारै।।
कबीर परमेश्वर जी और धर्मराज की वार्ता को संत गरीबदास जी महाराज ने चित्रित किया है।
कबीर,कर्म भ्रम ब्रह्मंण्ड के, मैं पल में कर दूं नेस।
जिन हमरी दुहाई दी,वह करो हमारे पेश।।
कबीर,स्वांस ऊस्वांस नाम जपो,व्यर्था स्वांस मत खो।
न जाने इस स्वांस को, आवन हो की न हो।।
संत गरीब दास जी महाराज की वाणी है।
गरीब,सतगुरु जो चाहे सो करही,चौदह कोटि दूत यम डरही।
ऊत भूत यम त्रास निवारे, चित्रगुप्त के कागज फारै।।
कबीर परमेश्वर जी और धर्मराज की वार्ता को संत गरीबदास जी महाराज ने चित्रित किया है।
कबीर,कर्म भ्रम ब्रह्मंण्ड के, मैं पल में कर दूं नेस।
जिन हमरी दुहाई दी,वह करो हमारे पेश।।
तत्वदर्शी संत की पहचान कैसे करें ?
पूर्ण संत की पहचान हमारे सद्ग्रंथों में बिल्कुल क्लियर लिखी है शिक्षित समाज चेक कर सकता है। सबसे पहले हमारे पवित्र पुस्तक श्रीमद्भगवद्गीता में गीता बोलने वाला भगवान ब्रह्म अर्थात काल भगवान अ 7 के श्लोक 29 में कहा है जरा मरण मोक्षाय अर्थात जनम मरण के चक्र से निकलने के लिए पूर्ण संत की खोज करना चाहिए गीताज्ञानदाता अ 15 श्लोक 1 से 4 तक में अर्जुन से कहा रहा है कि जो संसार रुपी उल्टे लटके हुए वृक्ष के सभी विभागों को जो विस्तार से बता देगा वहीं तत्वदर्शी संत है ।
कबीर परमेश्वर जी ने अपनी वाणी में पहले ही बताया है।👇
अक्षर पुरुष एक पेड़ है,क्षर पुरुष वाकि डार।
तीनों देवा शाखा हैं,पात रुप संसार।।
वर्तमान में वह भेद तत्वदर्शी संत या बाखबर संतरामपालजी महाराज के पास है जो सारे धर्मों के सद्ग्रंथों से प्रमाण सहित आध्यात्मिक ज्ञान बता रहे हैं।
अ् 4 के श्लोक 34 में कहा है तत्वदर्शी संत की शरण में जा दंडवत प्रणाम करके कपट छोड़कर विनम्रतापूर्वक प्रश्न करने से वह संत तुझे तत्वज्ञान का उपदेश करेगा।
फिर अ 7 के श्लोक 19 में कहा है कि तत्वदर्शी संत का मिलना बहुत ही दुर्लभ है।
संत गरीब दास जी ने अपनी वाणी में लिखा है।
कोट्यो मध्य कोई नही रे झूमकरा,अरबों में गर्क सुनो रे झूमकरा।।
संतरामपालजी महाराज के अमृतवचन निम्न टीवी चैनलों पर रोजाना प्रसारित किए जा रहे हैं।
जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम दीक्षा लेने के लिए कृपया यह फॉर्म भरें 👇🏻
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कबीर परमेश्वर जी ने अपनी वाणी में पहले ही बताया है।👇
अक्षर पुरुष एक पेड़ है,क्षर पुरुष वाकि डार।
तीनों देवा शाखा हैं,पात रुप संसार।।
माता दुर्गा जी भी तत्वदर्शी संत की पहचान देवी भागवत पुराण में अपने पुत्र ब्रह्मा जी से बता रही हैं वह कह रही हैं कि जो मेरे और ब्रह्म के भेद को बता देगा वह बुद्धिमान पुरुष अर्थात तत्वदर्शी संत होगा।
अ् 4 के श्लोक 34 में कहा है तत्वदर्शी संत की शरण में जा दंडवत प्रणाम करके कपट छोड़कर विनम्रतापूर्वक प्रश्न करने से वह संत तुझे तत्वज्ञान का उपदेश करेगा।
फिर अ 7 के श्लोक 19 में कहा है कि तत्वदर्शी संत का मिलना बहुत ही दुर्लभ है।
संत गरीब दास जी ने अपनी वाणी में लिखा है।
कोट्यो मध्य कोई नही रे झूमकरा,अरबों में गर्क सुनो रे झूमकरा।।
वेदों में पूर्ण संत की पहचान बिल्कुल साफ साफ दी गई है जैसे सामवेद संख्या 822 में प्रमाण है कि पूर्ण संत तीन प्रकार के मंत्रों को तीन बार में उपदेश करेगा। वहीं ऋग्वेद मंडल न 8 सूक्त 1 मंत्र 9 व यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25 व 26 में लिखा है कि पूर्ण संत वेदों के सांकेतिक शब्दों को व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताऊंगा व तीन समय की पूजा करवाएगा। सुबह और शाम पूर्ण परमेश्वर की स्तुति तथा मध्य दिन में विश्व के सब देवताओं की स्तुति करने को कहता है। यजुर्वेद अध्याय 19 के मंत्र 30 में लिखा है कि वह उसी को शिष्य बनाया है जो सदाचारी रहे। अभक्ष्य पदार्थों का सेवन न नशीली वस्तुओं का सेवन न करने का आश्वासन देता है।
Identity of True Guru In Rigved |
पुण्यात्माओं सिक्ख धर्म के प्रवर्तक श्री गुरुनानक देव जी ने पूर्ण गुरु की पहचान क्या है ? अपनी वाणी में बताया है
जै पंडित तु पढि़या, बिना दुउ अखर दुउ नामा।
प्रणवत नानक एक लंघाए, जे कर सच समावा।
सोई गुरु पूरा कहावै,जो दो अक्षर का भेद बतावै।
एक छुड़ावे एक लगावे, तो प्राणी निज घर को जावे।
चहऊं का संग, चहऊं का मीत, जामै चारि हटावै नित।
मन पवन को राखै बंद, लहे त्रिकुटी त्रिवैणी संध।।
गुरुनानकदेव जी महाराज अपनी वाणी द्वारा समाझाना चाहते हैं कि पूरा सतगुरु वही है जो दो अक्षर के जाप के बारे में जानता है। और जो तीन बार में नाम दे और स्वांस की क्रिया के साथ सुमिरण का तरीका बताए। तभी जीव का मोक्ष संभव है। आखिर वह दो अक्षर का कौन सा मंत्र है ?
waheguru waheguru |
कबीर परमात्मा ने अपने शिष्य धर्मदास को बताया कि जो मेरा संत सतभक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे यह उसकी पहचान होगी।
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावे।
वाके संग सभी राड बढ़ावे।।
सतगुरु की पहचान संत गरीबदास जी महाराज की वाणी में -
”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधुरे बैन विनोद।
चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।“
पूर्ण संत चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा। अर्थात् उनका सार निकाल कर बताएगा।
यह सब बातें सच्चे सतगुरु संतरामपालजी महाराज पर ही खरी उतरती हैं।
उसका भेद जानने के लिए आप संतरामपालजी महाराज द्वारा लिखित पवित्र आध्यात्मिक पुस्तक ज्ञान गंगा पढ़ सकते हैं इसके लिए पुस्तक पर क्लिक कर डाउनलोड कर सकते हैं।
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