कई महापुरुषों ने अपनी वाणी में ठोककर गवाही दी है कि कबीर साहेब जी ही पूर्ण परमात्मा हैं।
कबीर,एक राम दशरथ का बेटा
एक राम घट घट में बैठा।
एक राम का सकल पसारा,
एक राम त्रिभुवन से न्यारा।।
तीन राम को सब कोई धयावे,
चतुर्थ राम को मर्म न पावे।
चौथा छाड़ि जो पंचम धयावे,
कहे कबीर सो हमपर आवे।।
राम राम सब जगत बखाना,
आदि राम कोई बिरला ही जाना।
अटपटा ज्ञान कबीर का,झटपट समझ न आए।
झटपट समझ आए तो,सब खटपट ही मिट जाए ।।

साचा शब्द कबीर का,सुनकर लागै आग ।
अज्ञानी सो जल जल मरे, ज्ञानी जाए जाग ।।

साचा शब्द कबीर का, परदे मांही पहचान।
कबीर, राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।

कबीर,चार भुजा के भजन में, भूलि परे सब संत। 
कबीरा, सुमिरो तासु को, जाके भुजा अनंत।।
"कबीर"  शब्द का अर्थ सर्वश्रेष्ठ,सर्वोतम,सबसे बड़ा,महान, है।
गौर कीजिए,असली भगवान को पहचानिए।
क का केवल नाम है ,ब से बरन शरीर।
र से रम रहा संसार ,ताका नाम कबीर॥
गरीब :-
हम ही अलख अल्लाह है, कुतुब गौस और पीर।
गरीबदास खालिक धणी, हमरा नाम कबीर॥
गरीब :-
अनंत कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, ये कुल के सृजनहार॥
दादू:-
जिन मोकू निज नाम दिया, सोई सतगुरू हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, वो कबीर सृजनहार॥
कबीर :-
ना हमरे कोई मात-पिता, ना हमरे घर दासी।
जुलाहा सुत आन कहाया, जगत करै मेरी हाँसी॥
कबीर :-
पानी से पैदा नहीं, श्वासा नहीं शरीर।
अन्न आहार करता नहीं, ताका नाम कबीर॥
कबीर :-
ना हम जन्मे गर्भ बसेरा, बालक होय दिखलाया।
काशा शहर जलज पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया॥
कबीर :- 
सतयुग में सत्यसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनीन्द्र मेरा, द्वापर में करूणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।।
कबीर :-
अरबों तो ब्रह्मा गये, उन्नचास कोटि कन्हैया ।
सात कोटि शम्भू गये, मोर एक पल नहीं पलैया॥
कबीर :-
नहीं बूढा नहीं बालक, नहीं कोई भाट भिखारी।
कहै कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी॥
कबीर :-
पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानू ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा॥
कबीर :-
हाड- चाम लहू नहीं मेरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी॥
कबीर :-
अधर द्वीप ( सतलोक ) भँवर गुफा, जहाँ निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन भी, धरता ध्यान हमारा॥
कबीर :-
जो बूझे सोई बावरा, पूछे उम्र हमारी।
असंख्य युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी॥
कबीर :-
अवधू अविगत से चल आया, मेरा कोई मर्म भेद ना पाया ॥
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही पांचवां राम या आदि राम हैं।
गुरुनानक देव जी के अनुसार पूर्ण परमात्मा "सत कबीर" हैं।
हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।
‘‘राग तिलंग महला 1‘‘ पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721
नानक देव जी कहते हैं:-

हे सर्व सृष्टि रचनहार, दयालु ‘‘सतकबीर‘‘ आप निर्विकार परमात्मा हैं।
फिर गुरुनानक देव जी राग "सिरी" महला  1 पृष्ठ  24 पर कहते हैं 
धाणक रुप रहा करतार"

मुझे धाणक रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया।


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